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वजूद की जंग में उलझती नगर पालिका, कैसे होगा विकास*

मऊरानीपुर(झांसी) बर्ष 1995 कांग्रेस से पाला बदल कर भाजपा में आई पुष्पा वर्मा ने पालिका अध्यक्ष पद की दावेदारी की और पार्टी टिकिट पर जीत भी गई। उस समय सदन में सभी 25 पार्षद जो चुनकर पहुंचे सभी खुद में ताकतवर और राजनीत के अल्मबरदार माने जाते थे। अध्यक्ष के कुछ कार्यों का विरोध भी हुआ तो जनहित के मुद्दों पर समर्थन भी मिला।बीच में विरोध इस हद तक जा पहुंचा कि अविश्वास प्रस्ताव तक लाया गया।लेकिन प्रस्ताव भले गिर गया हो पर अध्यक्ष हो पार्षद सभी ने जनहित के मुद्दों को सर्वोपरि रखा। हर मीटिंग हंगामे से भरी रहती थी।लेकिन सभी में मर्यादा इतनी की सदन की बात सदन में ही खत्म हो जाती थी। कभी सड़कों पर नही आ पाई।चाहे वो उप चेयर मैन पद के चुनाव तक क्यों न हो।पुष्पा वर्मा के बाद पार्षद रहे हरिश्चंद आर्य लगातार चार बार अध्यक्ष चुने गए।बोर्ड मीटिंग में उनका भी विरोध हुआ।लेकिन सभी कार्यकाल पालिका के अंदर तक ही सीमित रहे।विकास कार्य के नए फलसफे और कीर्तिमान रचे गए,जो आज भी गवाह है।लेकिन वर्तमान बोर्ड में चाहे अध्यक्ष शशि देवी हो या उनके प्रतिनिधि आयुष श्रीवास हो या फिर पार्षद हो। सभी नगर विकास के मुद्दों से भटक कर खुद के वजूद की जंग में ऐसे उलझ गए कि मामला थाने कचहरी तक जा पहुंचे सड़कों पर आया विवाद संभवत संकेत देता है कि पूरे पांच साल में चाहे अध्यक्ष हो पार्षद आखिर नगर की जनता को विकास के मुद्दे पर क्या जबाब देंगे यदि सभी अपनी अपनी हनक में उलझे रहे तो। यहां यह बता देना जरूरी है कि कुछ पार्षद  खुद के विवेक की जगह रिमोटिड की तरह सदन में जिस तरह बर्ताव कर रहे है। उन्हें साधने की जगह अध्यक्ष ने जिस तरह केस दर्ज करवाया उसका परिणाम कुछ भी हो लेकिन नगर विकास और जनहित के नाम पर कुछ भी ठीक ठाक नही चल रहा है।युवा जोश अलग राह पर चल रहा है। जनता में जो संदेश जा रहा है वह स्कारत्मक नही माना जा रहा। ऐसे में आगे की और ऊंची राजनीति की रडनीती पहले पायदान पर ही दम तोड़ती नजर आ रही है। ऐसे में सदन में चाहे अध्यक्ष हो या उनके प्रतिनिधि या पार्षद सभी को मौका है कि आत्म मंथन जरूर करे।
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