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आजादी के बाद रानी के प्रपौत्र कर दिए बेगाने, 7 साल बाद आये हो जन्मोत्सव मनाने

झांसी। 1857 की क्रांति में अंग्रेजी सेना को लोहे के चने चबवाने वाली अदम्य साहस की प्रतिमूर्ति वीरांगना महारानी लक्ष्मी बाई के जन्मोत्सव पर आज अपनी नगरी झांसी की सूरत ही बदल गई है। रोड चकाचक हो गए हैं। किले के मैदान की सफाई हो गई है। किले में लाइटिंग हो गई है। सेना ने डेरा डाल लिया है, हर घंटे आसमान में लड़ाकुओं की गड़गड़ाहट सुनाई दे रही है। लग रहा है कि वाकई आज हम झांसी में हैं। लेकिन दिल पर हाथ रखकर बताना गुरु! ये सब महारानी के लिए है या चौकीदार के लिए। और ताल ठोक कर बोलूं तो आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर ये सब हो रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते पहले भी हर साल रानी का जन्म दिवस आता रहा है। तब कहाँ थे आप?
अंग्रेजों से भी गए बीते हैं ये लोग
वहीं महारानी लक्ष्मीबाई के वंशज आजादी के बाद बेगाने हो गए। आजाद भारत में उन्हें गुमनामी और बदहाली का जीवन जीना पड़ा। अंग्रेज तो दामोदर राव व उनके पुत्रों को पेंशन देते रहे, लेकिन स्वतंत्रता के बाद अपनी ही सरकार से उन्हें एक पाई मदद के रूप में नहीं मिली। आर्थिक तंगी के कारण रानी के प्रपौत्र इंदौर की कचहरी में टाइपिंग कर अपने परिवार का भरण पोषण करते रहे, लेकिन सरकार ने मदद का हाथ तक नहीं बढ़ाया।
अंग्रेजों की राज्य हड़पो नीति को देखते हुए झांसी के राजा गंगाधर राव व रानी लक्ष्मी बाई ने अपने पुत्र के निधन के बाद राज्य के तहसीलदार काशीनाथ हरिभाऊ के चचेरे भाई वासुदेव के पुत्र दामोदर राव को गोद ले लिया था। वासुदेव ने इस उम्मीद के की गोद में दिया था कि उसका पुत्र आने वाले समय में झांसी का राजा बनेगा। लेकिन, भाग्य को कुछ और ही मंजूर था। अंग्रेजों ने गोद परंपरा को नहीं माना। 1857 में हुई क्रांति में रानी की शहादत के बाद दामोदर राव की जान को भी खतरा हो गया। ऐसे हालात में

रानी के अंगरक्षक देशमुख उनको उनका विवाह हो गया। 1872 में बचते बचाते किसी तरह इंदौर ले दामोदर राव की पत्नी का निधन हो गए दामोदर राव को वहीं पर पाला गया, इसके बाद बलवंत राव की पुत्री पोसा गया। वह इंदौर में ही रहने लगे से उनका दूसरा विवाह हुआ, जिससे वहां माटोरकर की पुत्री के साथ उनका विवाह हो गया। 1872 में दामोदर राव की पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद बलवंतराव की पुत्री से उनका दूसरा विवाह हुआ, जिनसे लक्ष्मणराव पैदा हुए। 
महाश्वेता देवी की पुस्तक 'झांसी की रानी के अनुसार 1870 में इंदौर में अकाल पड़ा था। इस दौरान दामोदर राव एक सूदखोर महाजन के कर्ज में फंस गए। दामोदर राव ने सहायता के लिए इंदौर के रेजीडेंट जनरल से कई बार निवेदन किया, लेकिन मदद नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड नोर्थबुक से अनुरोध किया। उनके निर्देश पर रेजीडेंट ने उन्हें एक मुश्त दस हजार रुपये और दो सौ रुपये मासिक पेंशन देना स्वीकृत की। उनकी मृत्यु के बाद 100 रुपये मासिक पेंशन उनके पुत्र लक्ष्मण राव को भी मिली। आजाद भारत होते ही सारी सुविधाएं छीन ली गई। लक्ष्मण राव के प्रपौत्र योगेश राव के अनुसार के देश की आजादी के बाद उनके परिजनों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित का प्रमाण पत्र भी नहीं मिला, इस कारण उन्हें वह सुविधाएं भी नहीं मिलीं जो स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को मिल रही हैं।
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