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देश के द्वितीय परंतु अद्वितीय राष्ट्रपति थे राधाकृष्णन:डाॅ सुनील तिवारी

बरूआसागर(झांसी)। शिक्षक दिवस के अवसर पर क्रांतिवीर सेवक संघ के तत्तवावधान में डाॅ सुनील तिवारी के मुख्य आतिथ्य एवं नगर संयोजक पं दिनेश मिश्रा की अध्यक्षता में "शिक्षकों की राष्ट्र निर्माण में भूमिका" विषय पर संगोष्ठी हुई। 
संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुये मुख्य अतिथि के रूप में डाॅ सुनील तिवारी ने कहा कि शिक्षकों की राष्ट्रनिर्माण में महती भूमिका है। सर्वपल्ली राधाकृष्णन  महान दार्शनिक, विद्वान शिक्षक थे । उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न, टेंपलटन प्राइज, जर्मन बुक ट्रेड का शांति पुरस्कार,यूक्रेन के ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्मान से सम्मानित किया गया। वे आन्ध्र विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर, ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर, कलकत्ता विश्वविद्यालय के जॉर्ज पंचम कॉलेज के प्रोफेसर, काशी हिन्दू विश्‍वविद्यालय के चांसलर ,दिल्ली विश्‍वविद्यालय के चांसलर, युनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि ,रूस में भारत के राजदूत, संविधान निर्मात्री सभा के गैर राजनीतिक सदस्य रहे।मानव जाति का मार्गदर्शन करने वाले उत्कृष्ट ग्रंथ-दी हिन्दू व्‍यू ऑफ लाइफ, रिलीजन एन्‍ड सोसायटी, इंडियन फिलॉसफी,द भगवत गीता ,द ब्रह्मसूत्र,द प्रिसिपल ऑफ द उपनिषद, मनोविज्ञान के आवश्‍यक तत्‍व,आर्टिकल्‍स ऑन  इंडियन फिलॉसफी इन एन्‍साइक्‍लोपीडिया ब्रिटेनिका , ईस्‍ट एण्‍ड वेस्‍ट सम रिफलेक्‍शन , धम्‍मपद,विद्यासागर ,रेन ऑफ रिलीजन इन कंटेम्‍परेरी फिलॉसफी, ईस्‍टर्न रिलिजन्‍स एंड वैर्स्‍टन थॉंट, ए सोर्स बुक ऑफ इंडियन फिलॉसफी के लेखक, भगवान आदि शंकराचार्य जी की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए प्रस्थानत्रयी अर्थात् श्रीमद्भगवद्गीता, ब्रह्मसूत्र व उपनिषदों का भाष्य करने वाले,महान दार्शनिक प्लेटो द्वारा रिपब्लिक में वर्णित आदर्श दार्शनिक राजा के मूर्त रूप, हम सभी शिक्षकों के  पथ प्रदर्शक व प्रेरणास्रोत रहे।
अध्यक्षीय उद्बोधन में पं दिनेश मिश्रा ने कहा कि डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी के जन्मदिवस पर मनाए जाने वाले शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को,  हमारी ओर से हार्दिक शुभकामनाए। शिक्षक,वास्तव में राष्ट्र की अक्षुण निधि है।

संगोष्ठी को सम्बोधित करने वालों में  राधारमन नौगरैया, दशरथ रजक, अजित प्रोहित 'दुष्यन्त', प्रमोद राय, आनन्द विरथरे, अशोक पाण्डेय, लक्ष्मी झा, मुकेश साहू, धीरेन्द्र चतुर्वेदी, संजीव चौबे,अनिल विरथरे आदि प्रमुख रहे।

संगोष्ठी का संचालन जयप्रकाश विरथरे ने किया। अन्त में आनन्द विरथरे  ने आभार ज्ञापित किया।
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