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मोदी सरकार ने ही खोल दी बाबा जान की पोल, अब्बाजान कहने वालों को 3 करोड़ तो 11 करोड़ हिंदुओं को भी मिलता था राशन

12 नवंबर को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर की सभा में संबोधित करते हुए बाबा जान ने पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार पर निशाना साधा था। इस दौरान उन्होंने कहा कि 2017 के पहले अब्बा जान कहने वाले लोगों को सरकारी खाद्यान्न का फायदा मिलता था। उनका इशारा मुस्लिमों की तरह तरफ था, कि  2017 के पहले केवल मुसलमानों को ही राशन का फायदा मिलता था। लेकिन इतने बड़े संवैधानिक पद पर बैठे बाबा जान की कलई उनकी ही अपनी मोदी सरकार ने खोल कर रख दी। आगामी विधानसभा चुनाव मैं एक बार फिर से जाति और धर्म के नाम पर राजनीति शुरू हो गई है। यही कारण है कि हिंदू और मुसलमान में खाई पैदा करके ज्यादा से ज्यादा वोट कैसे इकट्ठे किए जाएं? हर कोई इसी पर दिमाग लगा रहा है, लेकिन सच तो सच होता है, और तथ्य और सत्य से भागते बाबा जान अब शायद नफरत के बीज बोकर एक बार फिर से यूपी में अपनी सरकार बनाने की बाट जो रहे है, लेकिन तथ्य और सत्य तो कुछ और ही हैं। भले ही भरी सभा में तथ्यों को रौंदकर वाहवाही लूट ली गई हो, लेकिन इन तथ्यों ने बाबा जान की पोल खोल कर रख दी है। इन आंकड़ों को देखेंगे तो समझ जाएंगे कि कुशीनगर में जो कुछ भी बाबाजान ने कहा वह शिवाय झूठ के कुछ भी नहीं।
क्या कहते हैं आंकड़े?
इस समय उत्तर प्रदेश में तीन करोड़ 59 लाख राशन कार्ड धारक परिवार है और 14 करोड़ 40 लाख लोगों को राशन का फायदा मिल रहा है साल 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर गौर करें तो यूपी की जनसंख्या 19 करोड़ 98 लाख थी, यानी कि करीब 20 करोड़। इसमें 15 करोड़ 90 लाख हिंदू और 3 करोड़ 84 लाख मुसलमान। यदि मान लें की अखिलेश सरकार ने सभी तीन करोड़ 84 लाख मुसलमानों को सरकारी राशन मिला है तब भी 11 करोड लोग कौन है जाहिर है बाकी बचे लोग हिंदू ही हैं लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री सांप्रदायिक जहर घोलने में इतने माहिर हैं कि वह जाति धर्मों के बीच नफरत के बीज बोने के लिए तथ्यों को रौंदने से भी नहीं चूकते।
आंकड़े हमने नहीं बनाए बल्कि मोदी सरकार की केंद्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की वेबसाइट चिल्ला चिल्ला कर बोल रही है। लेकिन इतने बड़े संवैधानिक पद पर बैठे बाबा जान शायद इन तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर लोगों के बीच नफरत का बीज बोने में जुटे हुए हैं क्योंकि आगामी विधानसभा चुनाव में जीत के लिए ना तो उनके पास कोई काम है ना ही सरकार के फैलियर का कोई जवाब। फिर चाहे वह कोरोना की दूसरी लहर में गंगा किनारे अपनों के शव दफनाने को मजबूर हिंदुओं के सवाल हों, या फिर फिरोजाबाद में बिस्तर और दवा की कमी के चलते अपनों को खो चुके परिजनों के सवाल हों। ऐसे तमाम सवाल हैं। जिन से यूपी के मुख्यमंत्री बाबा जान बचना चाहते हैं, और उत्तर प्रदेश में अब काम के नाम पर नहीं बल्कि हिंदू मुस्लिम के बीच गहरी खाई खोद कर विधानसभा चुनाव में अपना परचम लहराने की जुगत लगा रहे हैं।

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